12 साल में एक बार खिलता है केरल का दुर्लभ 'नीलकुरिंजी ' फूल

नीलकुरंजी
 भारत की आज़ादी की 72वीं सालगिरह पर जब प्रधानमंत्री मोदी ने भाषण शुरू किया तो शुरुआत में एक फूल का ज़िक्र किया, जो अब चर्चा का विषय बन गया मोदी ने कहा,..... ''हमारे देश में 12 साल में एक बार नीलकुरंजी का पुष्प उगता है इस वर्ष दक्षिण की नीलगिरि की पहाड़ियों पर नीलकुरंजी का पुष्प जैसे मानो तिरंगे झंडे के अशोक चक्र की तरह देश की आज़ादी के पर्व में लहलहा रहा है.''

कुरंजी और नीलकुरंजी का वैज्ञानिक नाम Strobilanthes kunthianus है ये दक्षिण भारत के वेस्टर्न घाट के शोला जंगलों में पाया जाता है नीलगिरि हिल्स का मतलब है 'नीले पहाड़ 'और इसे ये नाम इसी फूल की वजह से मिला है देखने पर ऐसा लगता है की मानो जैसे नीले आसमान के नीचे पर्वत पर नीले रंग की चादर बिछ गई हो। ये फूल असल में 12 साल में एक बार खिलता है और उस साल पर्यटकों की भीड़ रहती है इस फूल के साल 1838, 1850, 1862, 1874, 1886, 1898, 1910, 1992, 1934, 1946, 1958, 1970, 1982, 1994, 2006 और 2018 में खिलने की जानकारी है कुछ कुरंजी फूल ऐसे हैं जो हर सात साल में खिलते हैं और फिर मर जाते हैं वनस्पति विशेषज्ञों की के अनुसार यह फूल एक बार खिलने के बाद सूखने लगते हैं, जिसके बाद ये अपने बीज उसी स्थान पर गिरा देते हैं। ये जान कर आप हैरान हो सकते है की तमिलनाडु के पलियान समुदाय के लोग इस फूल को अपनी उम्र का आकलन करने के लिए इस्तेमाल करते हैं नीलकुरंजी फूल 1300 से 2400 मीटर की ऊंचाई पर खिलते हैं और इसका पौधा 30-60 सेंटीमीटर ऊंचा होता है हालांकि ये कुछ मामलों में 180 सेंटीमीटर तक भी चला जाता है एक वक़्त था जब नीलगिरि और पलानी हिल्स की सारी पहाड़ियां कुरंजी फूलों की चादर से ढकी रहती थी लेकिन अब दूसरे पेड़-पौधे और इंसानी आबादी वो जगह घेरती जा रही है ज़ाहिर है, जैसा कि इस फूल के नाम से ज़ाहिर होता है, ये नीले रंग का होता है साल 2018 में मुन्नार में ये फूल उगा है और इसे देखने हज़ारों लोग पहुंच रहे हैं केरल की सरकार ने बाकायदा keralatourism.org वेबसाइट पर इस जानकारी को अपलोड़ किया है नीलकुरंजी की 40 क़िस्में होती हैं. इनमें से ज़्यादातर नीले रंग की होती हैं फूल के नाम में नील के मायने नीले रंग से हैं और कुरंजी इस इलाके के आदिवासियों की तरफ़ से इस फूल को दिया नाम है

इस सीजन में पूरा मुन्नार नीला-पर्पल हो जाता है
सिर्फ मुन्नार ही नहीं कर्नाटक के वेस्टर्न घाट और तमिलनाडु के नीलगिरी पर्वत पर भी हर 12 साल में नीलकुरिंजिनी के फूल खिलते हैं कर्नाटक में बेल्लारी जिले की संदूर पर्वत श्रृंखला भी अगस्त के बाद से ही नीलकुरिंजिनी के फूलों से भर गई है इसके आलावा तमिलनाडु की नीलगिरी पर्वत श्रृंखला का नाम भी इन्हीं फूलों के चलते पड़ा है बताया जाता है कि तमिल में 2000 साल पहले लिखी गई कविताओं में भी इन फूलों का ज़िक्र आता रहा है. फिलहाल भारत में इन फूलों की करीब 46 प्रजातियां पाई जाती हैं ये फूल पर्पल के आलावा नीले, हरे और लाल रंग में भी मिलते हैं दुनिया भर में नीलकुरिंजिनी की 240 प्रजातियां पाई जाती हैं फिलहाल मुन्नार में नीलकुरिंजिनी का सीजन शुरू हो गया है जो अगली सर्दियों तक चलेगा.
  

साल 2006 में पिछली बार खिला ये फूल इस साल अगस्त 2018 में खिला है और इस पर अक्टूबर तक बहार रहेगी केरल में मुन्नार में कोविलूर, कदावरी, राजामाला और इरावीकुलम नेशनल पार्क में इन फूलों से गज़ब का माहौल बना है और देश विदेश से इसे देखने पर्यटक खींचे चले आते है केरल का इरविकुलम नेशनल पार्क जहाँ से फूल खिले है मुख्यत: यहां पाई जाने वाली दुर्लभ नीलगिरि तहर ( जंगली बकरी ) के लिए भी जाना जाता है।

अगर आप नीलकुरिंजी की खूबसूरती के कायल हो गये हैं तो जल्दी कीजिए ये इसे देखने का सही वक्त है। अगर अभी नीलकुरिंजी को नहीं देखा तो ये मौका अब 12 साल बाद ही आएगा। नीलकुरिंजी जहां खिलता है उसे देखने के लिए आपको टिकट खरीदना पड़ेगा। केरल टूरिज्म की ओर से नेशनल पार्क के लिए टिकटों की बिक्री ऑनलाइन भी हो रही है। आप चाहें तो www.eravikulam.org पर जाकर ऑनलाइन टिकट बुक कर सकते हैं। व्यस्कों के लिए 120 रुपये, बच्चों के लिए 90 रुपये जबकि विदेशी पर्यटकों के लिए टिकट की कीमत 400 रुपये है। इसके अलावा साधारण कैमरा के लिए 40 रुपये जबकि वीडियो कैमरा के लिए 315 रुपये देने होंगे। इस बार पर्यटकों की संख्या 3500 प्रतिदिन सीमित की गई है। पिछली बार साल 2006 में जब नीलकुरिंजी फूल खिले थे तो उस वक्त इसे देखने के लिए देश-विदेश से 3 लाख से भी ज्यादा पर्यटक मुन्नार पहुंचे थे। केरल टूरिज्म के अनुमान के मुताबिक, इस बार पर्यटकों की संख्या करीब 8 लाख तक पहुंच सकती है।

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