चंदन वृक्ष - (Sandal Wood )

चंदन वृक्ष 
भारतीय चंदन (Santalum Album) का संसार में सर्वोच्च स्थान है। इसका आर्थिक और धार्मिक महत्व भी है। यह पेड़ हमारे देश में मुख्यत: कर्नाटक के जंगलों में मिलता है दक्षिण भारत में चंदन बहुतायत से पैदा होता है।भारत के 600 से लेकर 900 मीटर तक कुछ ऊँचे स्थल और मलयद्वीप इसके मूल स्थान हैं। पेसिफिक चंदन ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में पैदा होता है। चीन,मलेशिया और इंडोनेशिया में भी चंदन पाया जाता है। मलयालम, संस्कृत और हिंदी भाषा में इसे 'चंदन' कहते हैं। कन्नड़ में श्रीगंधा और गुजराती में सुकेत। वनस्पति शास्त्री इसे सेंटलम अल्यम कहते हैं जो सेंटलेसी परिवार का सदस्य है। काफी समय तक चंदन का पौधा भारत का मूलवासी माना गया मगर अब वैज्ञानिकों के अनुसार चंदन इंडोनेशिया का मूलवासी है। वहां पर तीन प्रकार की प्रजातियां पाई जाती हैं। चंदन के हरे पेड़ में खुशबू नहीं होती है। वास्तव में चंदन के पेड़ की पक्की लकड़ी जिसे हीरा कहा जाता है उसमे ही खुशबू होती है। इस की खुशबू से आकर्षित हो कई बार सांप भी इससे लिपटे मिलते है चंदन की लकड़ी का प्रयोग विभिन्न कार्यों के लिए किया जाता है। चंदन की लकड़ी का उपयोग नक्काशी के सुंदर काम के लिए भी किया जाता है। नक्काशी से सुंदर, कलात्मक मूर्तियां, खिलौने और दूसरे सजावटी सामान वर्षों से भारत में बनते और बिकते रहे हैं। मैसूर, सागर, भरतपुर और काठियावाड़ में इस हस्तशिल्प के कारीगर आज भी अपना हस्तकौशल दिखा रहे हैं। चंदन चार प्रकार का माना जाता है। सफेद, लाल, मयूर और नाग चंदन

चन्दन वृक्ष की खेती के लिए आवश्यक निर्देश 

चंदन के पेड़ लाल मिट्टी में अच्छी तरह से उगता है। इसके अलावा चट्टानी मिट्टी, पथरीली मिट्टी या चूनेदार मिट्टी में भी ये पेड़ उग जाता है। हालांकि, गीली मिट्टी और ज्यादा मिनरल्स वाली मिट्टी में ये पेड़ तेजी से नहीं उग पाता। अप्रैल और मई का महीना चंदन की बुवाई के लिए सबसे अच्छा होता है। पौधे बोने से पहले अच्छी और गहरी जुताई करनी जरूरी है। अगर आपके पास काफी जगह है तो एक खेत में 30 से 40 सेमी की दूरी पर चंदन के बीजों को बो दें। मानसून के पेड़ में ये पौधे तेजी से बढ़ते हैं, लेकिन गर्मियों में इन्हें सिंचाई की जरूरत है। चंदन के पेड़ को 5 से 50 डिग्री सेल्सियस टेम्प्रेचर वाले इलाके में लगाना सही माना जाता है। इस वृक्ष को उगाने के लिये ढालवाँ जमीन, जल सोखनेवाली उपजाऊ चिकली मिट्टी तथा 500 से लेकर 625 मिमी. तक वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। चंदन के वन में कोई सुगंध या खुशबू नहीं आती है। चंदन के पेड़ में साल में दो बार नई कोपलें, फल और फूल आते है। बरसात के पहले और बरसात के बाद चंदन के पेड़ फलों और फूलों से लदकर पूरे वन को एक नई आभा से युक्त कर देते हैं यह एक सदाबहार पेड़ है जो मूल रूप से परजीवी होता है। इस पौधे की जड़ें हॉस्टोरिया के सहारे दूसरे पेड़ों की जड़ों से जुड़कर भोजन, पानी और खनिज पाती रहती है। चंदन के परपोषकों में नागफनी, नीम, सिरीस, अमलतास, हरड़ आदि पेड़ों की जड़ें मुख्य हैं। चंदन इन पेड़ों के आसपास ही उगते हैं। लेकिन चंदन का पेड़, स्माइक रोग हो जाने पर जल्दी मर जाता है।


चन्दन वृक्ष का धार्मिक और आयुर्वेदिक महत्त्व 

लाल चंदन
अगर घर में चन्दन का पेड़ लगा हो तो घर में कभी वास्तु दोष नहीं होता है और परिवार भी रोगमुक्त रहता हैं घर की पश्चिम या दक्षिण दिशा में चंदन का पेड़ लगाने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। संस्कृत साहित्य में ' लाल चंदन ' का अनेक बार उल्लेख हुआ है। पूजा-पाठ में इसका प्रयोग होता है रक्त चंदन एक अलग जाति का पेड़ है जिसकी लकड़ी लाल होती है लाल रंग का होने की वजह से इसे रक्त चंदन भी कहते हैं  लेकिन उसमे सफ़ेद चंदन की तरह कोई महक नहीं होती लाल चंदन की लकड़ी अन्य लकड़ियों से उलट पानी में तेजी से डूब जाती हैं क्योंकि इसका घनत्व पानी से ज़्यादा होता है यही असली रक्त चंदन की पहचान होती है चंदन के पेड़ों को प्राचीन काल से उनके पीले रंग के अंत:काष्ठ के लिए उगाया जाता रहा है जो दाह संस्कारों और धार्मिक कर्मकांडों में मुख्य भूमिका निभाता था 

अगर आपको सूर्य से संबंधित कोई गृह दोष है तो लाल चंदन की पूजा करें क्योंकि ऐसा करने से आपकी नौकरी में उन्नति का योग भी बनता है। बार-बार धन हानि हो रही है, व्यापार में लगातार घाटा हो रहा हो या आर्थिक संकट बना हुआ है तो गुरु पुष्य नक्षत्र के एक दिन पहले चंदन के पेड़ की जड़ पर चावल, जल अर्पित करें और धूप-दीप दिखाकर आमंत्रण दें आएं। दूसरे दिन यानी गुरु पुष्य नक्षत्र के दिन उस पेड़ की एक छोटी सी लकड़ी लाकर एक लाल कपड़े में बांधकर घर के मुख्य द्वार के बीच में टांग दें। इससे आर्थिक स्थिति में तेजी से सुधार आने लगेगा। 'चन्दन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग' अर्थात चन्दन के पेड़ में शीतलता के कारण विषधारी सर्प लिपटे रहते है किन्तु चन्दन के वृक्ष पर सर्पो के विष का प्रभाव नहीं पड़ता है। यह चन्दन की विशेषता है। आयुर्वेद में चंदन को शीतल, शक्तिवर्धक, दंतक्षयनाशक और शरीर को शक्ति देने वाला माना गया है। कहा जाता है की देवलोक में भी चंदनासव, चंदन का शरबत आदि पिया जाता है। स्त्रियों के आलेपन, शृंगार, सुगंध और प्रसाधन के लिए चंदन का उपयोग ईसा के दो हजार वर्ष पूर्व से ही होता रहा है। आयुर्वेद में तमाम तरह की औषधियां बनाई जाती हैं चंदन के चूर्ण को कुछ विशेष तरह के पदार्थों में मिलाकर आयुवृद्धि की औषधियां बनाई जाती हैं ह्रदय रोग, त्वचा के रोग और मानसिक रोगों में चंदन के तेलों का खूब प्रयोग होता है सुगंध चिकित्सा और पंचकर्म में भी चंदन का प्रयोग किया जाता है



पूजा के हर कार्य में चन्दन की लकड़ी, चंदन का लेप और चंदन के इत्र का प्रयोग किया जाता है लोग अक्सर घर से निकलने से पहले या किसी धार्मिक काम में तिलक जरूर लगाते हैं. अक्सर लोग कुमकुम का तिलक लगाते हैं.वहीं कुछ लोग चंदन का टीका भी लगाते हैं नजरदोष से बचने के लिए रोज चन्दन का तिलक लगाना चाहिए इस तिलक को लगाने से मन को शांति मिलती है पीले चंदन का इस्तेमाल आम तौर वैष्णव मत को मानने वाले करते हैं जबकि रक्त चंदन शैव और शाक्त मत को मानने वाले अधिक प्रयोग करते हैं नियमित चन्दन का तिलक लगाने से आज्ञाचक्र सक्रिय हो कर शुभ फल देता है प्राचीन काल से ही शिवलिंग का अभिषेक भी चंदन से करने की परंपरा पाई जाती तिरुपति बालाजी के पूजा विधान ने हजारो सालो से चन्दन की लकड़ी का इस्तेमाल हो रहा है इस मंदिर को पूजा के लिए आने वाले समय में चन्दन नियमित रूप से मिलता रहे सिर्फ इसलिए तिरुपति बालाजी मंदिर ट्रस्ट अब चन्दन की खेती भी करता है बौद्ध धर्म में चंदन के प्रयोग से ध्यान करने की परंपरा बताई गई है चंदन की बनी अगरबत्तियां आपको कई बौद्ध मठो में जलती मिल जाएगी 

चन्दन वृक्ष का आर्थिक महत्त्व 


आमतौर पर किसान अपने बगीचों या खेतों के किनारे फलों के पेड़ लगाते हैं, ताकि सीजन आने पर उन्हें बेचकर मुनाफा कमाया जा सके। उनके लिए चन्दन का पेड़ एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है चंदन वृक्ष लगाने के बाद 5वें साल से लकड़ी रसदार बनना शुरू हो जाती है। 12 से 15 साल के बीच यह बिकने के लिए तैयार हो जाता है। चंदन के पेड़ की जड़ से सुगंधित प्रोडक्ट्स बनते हैं। इसलिए पेड़ को काटने के बजाए जड़ से ही उखाड़ा जाता है। उखाड़ने के बाद इसे टुकड़ों में काटा जाता है। ऐसा करके रसदार लकड़ी को कर लिया जाता है। एवरेज कंडीशन में एक चंदन के पेड़ से करीब 40 किलो तक अच्छी लकड़ी निकल जाती है। चन्दन वृक्ष की आयुवृद्धि के साथ ही साथ उसके तनों और जड़ों की लकड़ी में सुगन्धित तेल का अंश भी बढ़ने लगता है। तने की नरम लकड़ी तथा जड़ को जड़, कुंदा, बुरादा, तथा छिलका बेचा जाता है। इसकी लकड़ी का उपयोग मूर्तिकला, तथा साजसज्जा के सामान बनाने में और अन्य उत्पादनों का अगरबत्ती, हवन सामग्री, तथा सौंदर्य प्रसाधन के निर्माण में होता है। प्राचीन आसवन विधि द्वारा चन्दन की लकड़ी से सुगंधित तेल निकाला जाता है भारत में चंदन का तेल सौंदर्य प्रसाधन के रूप में मुंबई, कोलकाता, दिल्ली, कन्नौज, लखनऊ, कानपुर आदि में खपता है। लगभग संपूर्ण तेल सौंदर्य प्रसाधनों में प्रयुक्त होता है। एक किलो तेल लगभग दो हजार रुपए में बिकता है और इसके निर्यात से प्रतिवर्ष करोड़ो रुपया प्राप्त होता है। आमतौर पर चंदन की लकड़ी 6 से 7 हजार रुपए प्रति किलो की दर से बिकती है अगर क्वालिटी अच्छी हो तो 10 हजार रुपए किलो तक दाम आसानी से मिल जाते हैं। लेकिन बड़ा हो जाने पर चोरी के भय से चन्दन वृक्ष की सुरक्षा करना अति आवयशक हो जाता है चंदन की लकड़ी की अवैध तस्करी से चन्दन के पेड़ तेजी से कम हो रहे है 


हमारे देश में लगभग सभी धर्मो के प्राचीन साहित्य,पुराण और ग्रंथो में चन्दन की लकड़ी का वर्णन मिलता है मैसूर के राजा टीपू सुल्तान ने 1792 में ही चंदन को 'राज वृक्ष ' घोषित कर दिया था। भारत में लगभग आठ हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में चंदन की खेती होती है। बहुमूल्य वृक्ष होने के कारण अब तो इसकी खेती करने वाले किसानो के लिए बीमा की भी सुविधा उपलब्ध है हम बेशकीमती उत्तम चंदन की लकड़ी उत्पादन कर विदेशी मुद्रा भी कमा सकते है लेकिन अफ़सोस आज भी चन्दन की खेती के प्रति सरकारी रवैया उदासीन है धड़ल्ले से होती तस्करी और चोरी के कारण चन्दन के वृक्ष तेज़ी से घट रहे है वास्तव में चंदन हमारी संस्कृति का अंग रहा है। इसे सरकारी संरक्षण मिलना ही चाहिए। तभी ये बहुमूल्य वृक्ष लुप्त होने से बच पायेगा 

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