देवलोक का वृक्ष पारिजात या हरसिंगार ( Parizaat or Harsingaar )

इस खूबसूरत दुनिया में रंग-बिरंगे अनेक फूल मौजूद हैं जिनमें से एक खूबसूरत फूल पारिजात या हरसिंगार है ये उन प्रमुख वृक्षों में से एक है जिसके फूल ईश्वर की आराधना में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं ये फूल पवित्र और शुद्धता के प्रतीक माने जाते हैं इसलिए देवताओं को यह खूब भाते हैं परिजात के वृक्ष को दैवीय कहा जाता है धन की देवी लक्ष्मी को पारिजात के पुष्प प्रिय हैं उन्हें प्रसन्न करने में भी पारिजात पुष्प का उपयोग किया जाता है "ओम नमो मणिंद्राय आयुध धराय मम लक्ष्मी़वसंच्छितं पूरय पूरय ऐं हीं क्ली हयौं मणि भद्राय नम:" मन्त्र का जाप 108 बार करते हुए नारियल पर पारिजात पुष्प अर्पित किये जाएँ और पूजा के इस नारियल व फूलों को लाल रंग कपड़े में लपेटकर घर के पूजा घर में स्थापित किया जाए तो लक्ष्मी सहज ही प्रसन्न होकर साधक के घर में वास करती हैं। यह पूजा वर्ष के पाँच शुभ मुहर्त- होली, दीवाली, ग्रहण, रवि पुष्प तथा गुरु पुष्प नक्षत्र में की जाए तो उत्तम फल प्राप्त होता है। यह तथ्य भी महत्त्वपूर्ण है कि पारिजात वृक्ष के वे ही फूल उपयोग में लाए जाते हैं जो वृक्ष से टूटकर गिर जाते हैं। अर्थात् वृक्ष से फूल तोड़ना पूरी तरह से निषिद्ध है हिन्दू धर्म में इस वृक्ष को बहुत ही ख़ास स्थान प्राप्त है इसे प्राजक्ता, परिजात, हरसिंगार, शेफालिका, शेफाली, शिउली ,आर्बोर्ट्रिस्टिस (Arbor-tristis) भी कहा जाता है उर्दू में इसे गुलज़ाफ़री कहा जाता है पारिजात का वृक्ष बड़ा ही सुन्दर होता है जिस पर आकर्षक व सुगन्धित फूल लगते हैं यह सारे भारत में पैदा होता है। हरसिंगार फूल को ही ' रात की रानी ' का फूल भी कहते है हरसिंगार का यह वृक्ष रात की रानी के नाम से इसलिए जाना जाता है क्योंकि इसके पुष्प रात के समय खिलकर वातावरण को सुगंधित करते है तथा झड़ जाते है परिजात का फूल देखने में अलौकिक प्रतीत होता है पारिजात के वृक्ष की खासियत है कि जो भी इसे एक बार छू लेता है उसकी थकान चंद मिनटों में गायब हो जाती है। उसका शरीर पुन: स्फूर्ति प्राप्त कर लेता है।

पारिजात का वृक्ष दस से पन्द्रह फीट ऊँचा होता है। किसी-किसी स्थान पर इसकी ऊँचाई पच्चीस से तीस फीट तक भी होती है। विशेष रूप से पारिजात बाग-बगीचों में लगा हुआ मिलता है। इसके फूल बड़े ही आकर्षक होते हैं। इस वृक्ष की यह विशेषता भी है कि इसमें फूल बहुत बड़ी मात्रा में लगते हैं। चाहे फूल प्रतिदिन तोड़े जाएँ किंतु फिर भी अगले दिन फूल बड़ी मात्रा में लगते हैं। यह वृक्ष मध्य भारत और हिमालय की नीची तराइयों में अधिक पैदा होता है। इस वृक्ष की पत्तिया गुडहल के पत्तो की तरह चौड़ी होती है बगीचों या उद्यानों में लगा सफेद पुष्पों वाला झाड़ीदार ऊँचा वृक्ष अकस्मात ही मन मोह लेता है |आयु की दृष्टि से एक हज़ार से पाँच हज़ार वर्ष तक जीवित रहने वाले इस वृक्ष को वनस्पति शास्त्री एडोसोनिया वर्ग का मानते हैं जिसकी दुनिया भर में सिर्फ़ पाँच प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें से एक ‘डिजाहाट’ है। पारिजात वृक्ष इसी डिजाहाट प्रजाति का है। इस पेड़ में सफेद रंग के फूल आते है और नारंगी रंग की डंडी रहती है. फूल में बहुत तेज खुशबू आती है रात को ही यह फूल खिलते हैं सुबह जब आप उठेंगे तो यह आपको नीचे जमीन पर गिरे हुए मिलेंगे वायु के साथ जब दूर से इन फूलों की सुगन्ध आती है तब मन बहुत ही प्रसन्न और आनन्दित होता है जिसमें साल में बस एक ही महीने में फूल खिलते हैं। पारिजात के वृक्ष में गंगा दशहरा के आसपास  फूल खिलते है इसके फूलों में सुगंधित तेल होता है। रंगीन पुष्प नलिका में निक्टैन्थीन नामक रंग द्रव्य ग्लूकोसाइड के रूप में 0.1 प्रतिशत होता है, जो केसर में स्थित ए-क्रोसेटिन के सदृश्य होता है। बीज मज्जा से 12-16 प्रतिशत पीले भूरे रंग का स्थिर तेल निकलता है। पत्तों में टैनिक एसिड, मेथिलसेलिसिलेट, एक ग्लाइकोसाइड (1 प्रतिशत), मैनिटाल (1.3 प्रतिशत), एक राल (1.2 प्रतिशत), कुछ उड़नशील तेल, विटामिन सी और विटामिन ए पाया जाता है। छाल में एक ग्लाइकोसाइड और दो क्षाराभ होते हैं। यह पेड़ वर्ष में बस जून माह में फूल देता है। अगर इस वृक्ष की उम्र की बात की जाए तो वैज्ञानिकों के अनुसार यह वृक्ष 1 हजार से 5 हजार साल तक जीवित रह सकता है।

पारिजात के फूलों से जुडी रुक्मिणी और कृष्ण की प्रेम कहानी 

हरिवंशपुराण के अनुसार स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी परिजात के वृक्ष को छूकर ही अपनी थकान मिटाती थी लेकिन हैरानी की बात है जब पेड़ से फूल झड़ते हैं तो वे पेड़ के करीब नहीं, बहुत दूर जाकर गिरते हैं। परिजात के फूलों का यह स्वभाव भगवान कृष्ण और रुक्मिणी की प्रेम कहानी और सत्यभामा की जलन से जुड़ा है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार नारद ऋषि इन्द्रलोक से इस वृक्ष के कुछ फूल लेकर कृष्ण के पास गए। कृष्ण ने ये फूल उनसे लेकर अपने निकट बैठी पत्नी रुक्मिणी को दे दिए। इस घटना के बाद नारद, कृष्ण की दूसरी पत्नी सत्यभामा के पास गए और उनसे कहा कि परिजात के बेहद खूबसूरत फूल कृष्ण ने रुक्मिणी को सौंप दिए और उनके लिए एक भी नहीं रखा। यह बात सुनकर सत्यभामा ईर्ष्या से भर गईं और कृष्ण से जिद करने लगीं कि उन्हें परिजात का दिव्य वृक्ष चाहिए। परिजात का वृक्ष देवलोक में था, इसलिए कृष्ण ने उनसे कहा कि वे इन्द्र से आग्रह कर वृक्ष उन्हें ला देंगे। पति-पत्नी में झगड़ा लगाकर नारद, देवराज इन्द्र के पास गए और उनसे कहा कि मृत्युलोक से इस वृक्ष को ले जाने का षडयंत्र रचा जा रहा है लेकिन यह वृक्ष स्वर्ग की संपत्ति है, इसलिए यहीं रहना चाहिए। इतने में ही कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ इन्द्रलोक आए। पहले तो इन्द्र ने यह वृक्ष सौंपने से मना कर दिया लेकिन अंतत: उन्हें यह वृक्ष देना ही पड़ा।........ जब कृष्ण परिजात का वृक्ष ले जा रहे थे तब देवराज इन्द्र ने वृक्ष को यह श्राप दे दिया कि इस पेड़ के फूल दिन में नहीं खिलेंगे। सत्यभामा की जिद की वजह से कृष्ण परिजात के पेड़ को धरती पर ले आए और सत्यभामा की वाटिका में लगा दिया। लेकिन सत्यभामा को सबक सिखाने के लिए उन्होंने कुछ ऐसा किया कि वृक्ष लगा तो सत्यभामा की वाटिका में था लेकिन इसके फूल रुक्मिणी की वाटिका में गिरते थे। इस तरह सत्यभामा को वृक्ष तो मिला लेकिन फूल रुक्मिणी को ही प्राप्त होते थे। यही वजह है कि परिजात के फूल,अपने वृक्ष से बहुत दूर जाकर गिरते हैं। परिजात के विषय में एक अन्य मान्यता, परिजात नामक राजकुमारी से जुड़ी है जो सूर्य देव से बहुत प्रेम करती थी। अथक प्रयास और तप के बावजूद जब सूर्यदेव ने परिजात का प्रेम स्वीकार नहीं किया तब क्रोध में आकर परिजात ने आत्महत्या कर ली। जिस स्थान पर परिजात की समाधि बनाई गई उस पर यह वृक्ष उग गया और तब से इस वृक्ष का नाम परिजात पड़ गया। शायद यही कारण है कि रात के समय इस वृक्ष को देखने से लगता है मानो यह रो रहा है और सूरज की रोशनी में खिलखिला उठता है। 

एक अन्य कथा के अनुसार, अपने अज्ञातवास के दौरान पांडव अपनी माता कुंती के साथ कहीं जा रहे थे। उस समय उन्होंने सत्यभामा की वाटिका में यह वृक्ष देखा। कुंती ने अपने पुत्रों से इस वृक्ष को बोरोलिया में लगाने को कहा। तब से लेकर अब तक बाराबंकी का यह वृक्ष वहीं स्थित है। देशभर से लोग इस स्थान पर पूजा-अर्चना कर अपनी मन्नत मांगने और थकान मिटाने आते हैं। बाराबंकी स्थित परिजात का पेड़ अपने आप में बहुत रोचक है। लगभग 50 फीट के तने व 45 फीट की ऊंचाई वाले इस वृक्ष की अधिकांश शाखाएं मुड़कर धरती को छूती हैं।


पारिजात में औषधीय गुणों का भी भण्डार है

पारिजात में औषधीय गुणों का भी भण्डार है। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग विविध प्रकार की औषधि आदि के रूप में भी किया जाता है पारिजात बावासीर रोग के निदान के लिए रामबाण औषधी है। इसके एक बीज का सेवन प्रतिदिन किया जाये तो बवासीर रोग ठीक हो जाता है। पारिजात के बीज का लेप बनाकर गुदा पर लगाने से बवासीर के रोगी को राहत मिलती है। 

पारिजात पेड़ के पांच पत्ते तोड़ के पत्थर में पिस ले और चटनी बनाइये फिर एक ग्लास पानी में इतना गरम कीजिये की पानी आधा हो जाये फिर इसको ठंडा करके पीजिये तो बीस बीस साल पुराना गठिया का दर्द ठीक हो जाता है।

इसके फूल हृदय के लिए भी उत्तम औषधी माने जाते हैं। वर्ष में एक माह पारिजात पर फूल आने पर यदि इन फूलों का या फिर फूलों के रस का सेवन किया जाए तो हृदय रोग से बचा जा सकता है।

 इतना ही नहीं पारिजात की पत्तियों को पीस कर शहद में मिलाकर सेवन करने से सूखी खाँसी ठीक हो जाती है। इसी तरह पारिजात की पत्तियों को पीसकर त्वचा पर लगाने से त्वचा संबंधि रोग ठीक हो जाते हैं। पारिजात की पत्तियों से बने हर्बल तेल का भी त्वचा रोगों में भरपूर इस्तेमाल किया जाता है।

पारिजात की कोंपल को यदि पाँच काली मिर्च के साथ महिलाएँ सेवन करें तो महिलाओं को स्त्री रोग में लाभ मिलता है। वहीं पारिजात के बीज जहाँ बालों के लिए शीरप का काम करते हैं तो इसकी पत्तियों का जूस क्रोनिक बुखार को ठीक कर देता है। पारिजात का फूल हल्का, रूखा, तिक्त, कटु, गर्म, वात-कफ़नाशक, ज्वार नाशक, मृदु विरेचक, शामक, उष्णीय और रक्तशोधक होता है। सायटिका रोग को दूर करने का भी इसमें विशेष गुण होता है।

अगर घुटनों की चिकनाई (Smoothness) हो गई हो और जोड़ो के दर्द में किसी भी प्रकार की दवा से आराम ना मिलता हो तो ऐसे लोग हारसिंगार पेड़ के 10-12 पत्तों को पत्थर पे कूटकर एक गिलास पानी में उबालें-जब पानी एक चौथाई बच जाए तो बिना छाने ही ठंडा करके पी लें- इस प्रकार 90 दिन में चिकनाई पूरी तरह वापिस बन जाएगी-अगर कुछ कमी रह जाए तो फिर एक माह का अंतर देकर फिर से 90 दिन तक इसी क्रम को दोहराएँ-निश्चित लाभ की प्राप्ति होती है।

इस के पत्ते को पीस कर गरम पानी में डाल के पीजिये तो बुखार ठीक कर देता है और जो बुखार किसी दवा से ठीक नही होता वो इससे ठीक होता है; जैसे चिकनगुनिया का बुखार, डेंगू फीवर, Encephalitis , ब्रेन मलेरिया, ये सभी ठीक होते है।

हरसिंगार के पत्तों के रस को अदरक के रस और शहद के सुबह-शाम सेवन करने से यकृत और प्लीहा (तिल्ली) की वृद्धि ठीक हो जाती है।

हरसिंगार के बीज को पानी के साथ पीसकर सिर के गंजेपन की जगह लगाने से सिर में नये बाल आना शुरू हो जाते हैं। जड़ो से नये बाल फूटने लगते है।



इन सारी औषिधियों में एक बात का खयाल रखें कि वसन्त ऋतु में इसके पत्ते गुणहीन रहते हैं अतः यह प्रयोग वसन्त ऋतु में लाभ नहीं करता। इसलिए किसी अनुभवी वैध की सलाह लेकर ही इससे बनी औषिधियों का सेवन करना हितकारी रहेगा

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