शमी (SHAMMI) वृक्ष |
शास्त्रों में कहा गया है कि एक पेड़ दस पुत्रों के समान होता है। पेड़-पौधे घर की सुंदरता के साथ-साथ घर की सुख-शांति के द्योतक भी माने जाते हैं। हिंदू सभ्यता में मान्यता है कि कुछ पेड़-पौधों को घर में लगाने या उनकी उपासना करने से घर में सदा खुशहाली रहती है और घर में सदैव लक्ष्मी का वास रहता है। पीपल, केला और शमी का वृक्ष आदि ऐसे पेड़ हैं जो घर मंद समृद्धि प्रदान करते हैं। मान्यता है कि शमी का पेड़ घर में लगाने से देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है। पीपल और शमी दो ऐसे वृक्ष हैं जिन पर शनि का प्रभाव होता है। इसलिए लोग इन्हे घर में लगाने से भी डरते है पीपल का वृक्ष बहुत बड़ा होता है इसलिए इसे घर में लगाना संभव नहीं हो पाता। लेकिन शम्मी का पौधा आप गमले में भी लगा सकते है बिहार और झारखंड में यह वृक्ष अधिकतर घरों के दरवाजे के बाहर लगा हुआ मिलता है। 'खेजड़ी' या 'शमी' वृक्ष थार के मरुस्थल एवं अन्य स्थानों में ज्यादातर पाया जाता है। यह वहां के लोगों के लिए बहुत उपयोगी है। यह वृक्ष दुनिया के विभिन्न देशों में पाया जाता है जहाँ इसके अलग अलग नाम हैं। इसके अन्य नामों में घफ़ (संयुक्त अरब अमीरात), खेजड़ी, जांट/जांटी, सांगरी (राजस्थान), जंड (पंजाबी), कांडी सिंध), वण्णि (तमिल), शमी, सुमरी (गुजराती) आते हैं। इसका व्यापारिक नाम 'कांडी' है। अंग्रेजी में यह प्रोसोपिस 'सिनेरेरिया 'नाम से जाना जाता है। खेजड़ी का वृक्ष जेठ के महीने में भी हरा रहता है। कई जगह शम्मी को 'सफ़ेद कीकर' के नाम से भी जाना जाता है दिखने में ये बबूल के वृक्ष जैसा होता है और ज्यादातर शुष्क और रेतीली भूमि पर उगता है इस पर पीले और गुलाबी पुष्प मार्च से मई के बीच उगते है ये मटर प्रजाति का पेड़ है जिस पर फलियां आती है जिसे खाया भी जाता है शमी की सबसे बड़ी विशेषता है की पानी की बेहद कमी हो जाने पर भी इस की पत्तियां हरी ही रहती है और जानवरो को अकाल में भी भरपूर चारा मिलता रहता है
शम्मी वृक्ष को सही दिशा ज्ञान से लगाना अत्यंत महत्वपूर्ण क्यों है ?
शमी की पूजा के साथ ही एक सवाल यह भी है कि इस पेड़ को घर में किस तरफ लगाना चाहिए ? वास्तु शास्त्र में शमी का वृक्ष घर के ईशान कोण (पूर्वोत्तर) में लगाना लाभकारी माना गया है क्योंकि शमी वृक्ष तेजस्विता एवं दृढता का प्रतीक है। पूजा आदि के लिए तो इसे मंदिरो के आस पास कही भी लगाया जा सकता है शमी का वृक्ष आप अपने बगीचे में या गमले में लगा सकते हैं इसे सदैव आप अपने घर से निकलते समय ऐसी दिशा में लगाएं की जब भी घर से बाहर निकले तो यह आपके दाहिने हाथ की तरफ पड़े उत्तर भारत के बिहार राजस्थान ,पंजाब और झारखंड में सुबह के समय उठने के बाद शमी के वृक्ष के दर्शन को शुभ माना जाता है। लोग किसी भी काम पर जाने से पहले इसके दर्शन करते है और इसे माथे से लगाते हैं उन्हें विश्वास है की ऐसे करने से उन्हें उस काम में कामयाबी मिलती है। अगर आपके घर में कच्ची जगह नहीं है तो आप अपने छत पर भी यह पौधा रख सकते हैं छत पर इस पौधे को आप दक्षिण दिशा में रखने की कोशिश करें
शमी वृक्ष की पवित्रता का ध्यान रखते हुए कैसे लगाए ?
शमी के पौधे को लगाने के साथ-साथ इसकी देखरेख भी काफी जरूरी है इस पौधे को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती लेकिन धूप बहुत चाहिए तो आप कोशिश करें कैसे सनलाइट में ही रखें साथ ही साथ ज्यादा पानी ना दें इस पौधे को पवित्र गमले में या साफ जगह में लगाएं इस पौधे के आसपास आप नाली का पानी या फिर कूड़ा वगैरा फेंकने की जगह नहीं होनी चाहिए इसका गमला ऐसी जगह रखें जहां पर कोई व्यक्ति ना थूके इसके अलावा शमी के पवित्र पौधे को लगाने के लिए जो भी मिट्टी आप प्रयोग में लाएं उसे साफ जगह से लाये नाली की गन्दी या राख वाली मिट्टी प्रयोग ना करें गमले में गोबर खाद या फिर कंपोस्ट ही लगाएं केमिकल फर्टिलाइजर का प्रयोग ना करें जल देने वाले पात्र झूठा नहीं होना चाहिए
शमी वृक्ष की धार्मिक महत्त्व और पौराणिक मान्यताये
शमी शमयते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी ।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी ॥
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया ।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता ॥
धार्मिक मान्यताओं में शमी का वृक्ष बड़ा ही मंगलकारी माना गया है शमी के वृक्ष पर कई देवताओं का वास माना गया है दशहरे पर शमी के वृक्ष के पूजन का विशेष महत्व है ऐसी मान्यता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले शमी के वृक्ष के सम्मुख अपनी विजय के लिए प्रार्थना की थी रावण दहन के बाद घर लौटते समय शमी के पत्ते लूट कर लाने की प्रथा आज भी है इसकी पत्तियां 'स्वर्ण 'का प्रतीक मानी जाती है नवरात्र के दिनों में मां दुर्गा का पूजन शमी वृक्ष के पत्तों से करने का शास्त्रों में विधान है नवरात्र के नौ दिनों में प्रतिदिन शाम के समय वृक्ष का पूजन करने से धन की प्राप्ति होती है महाभारत में पांडवों द्वारा अज्ञातवास के अंतिम वर्ष में गांडीव धनुष इसी पेड़ में छुपाए जाने के उल्लेख मिलते हैं गणेश जी और शनिदेव दोनों को ही शमी बहुत प्रिय है। शमी के पेड़ की पूजा करने से शनि देव और भगवान गणेश दोनों की ही कृपा प्राप्त की जा सकती है एक मान्यता के अनुसार कवि कालिदास को शमी के वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या करने से ही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी इस पौधे में भगवान शिव स्वयं वास करते हैं जो गणेश जी के पिता और शनिदेव के गुरू हैं इसलिए भगवान गणेश की आराधना में शमी के वृक्ष की पत्तियों को अर्पित किया जाता है शमी पत्र के उपाय करने से घर-परिवार से अशांति को दूर भगाया जा सकता है ऋग्वेद के अनुसार शमी के पेड़ में आग पैदा करने कि क्षमता होती है ऋग्वेद की ही एक कथा के अनुसार आदिम काल में सबसे पहली बार मनुष्य ने शमी और पीपल की टहनियों को रगड़ कर ही आग पैदा की थी क्योंकि शमी में प्राकृतिक तौर पर अग्नि तत्व की प्रचुरता होती है इसलिए यज्ञ में अग्नि को प्रज्जवलित करने हेतु शमी की लकड़ी के विभिन्न उपकरणों का निर्माण किया जाता है शमी वृक्ष की लकड़ी को यज्ञ की वेदी के लिए पवित्र माना जाता है शनिवार को करने वाले यज्ञ में शमी की लकड़ी से बनी वेदी का विशेष महत्व है शमी या खेजड़ी के वृक्ष की लकड़ी यज्ञ की समिधा के लिए पवित्र मानी जाती है वसन्त ऋतु में समिधा के लिए शमी की लकड़ी का प्रावधान किया गया है शमी के पेड़ को शास्त्रों में 'वह्निवृक्ष' भी कहा जाता है
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